Myra Singh
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अडानी हसदेव वन मामला फिर से चर्चा में

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अडानी ग्रुप एवं अन्य बिजली निर्माण कंपनियों द्वारा बिजली उत्पादन के सुद्देश्य से देश के अलग अलग हिस्सों में कोयला खनन कार्य किया जा रहा है। राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड के अंतर्गत अडानी ग्रुप द्वारा भी छत्तीसगढ़ राज्य के हसदेव अरण्य वन में सभी सरकारी अनुमतियों के माध्यम से इसी प्रकार का कोयला खनन कार्य किया जा रहा है। अडानी हसदेव वन मामला इसी को लेकर है जिसमें स्थानीय लोग पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से इस खनन कार्य के पक्ष में नहीं है। हालाँकि अडानी ग्रुप भी इसके लिए चिंतित है एवं कोयले के अतिरिक्त वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों के लिए तेज गति से काम कर रहा है।

सरकार के निर्देशों के अधीन कार्यरत अडानी ग्रुप

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य वन में की जा रही कोल माइनिंग पूर्ण रूप से सरकार की अनुमति द्वारा हो रही है। राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड के लिए अडानी ग्रुप द्वारा बिजली निर्माण के लिए यह कोयला खनन का कार्य किया जा रहा है। साथ ही राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड एवं अडानी ग्रुप बिजली उत्पादन हेतु सौर ऊर्जा के विकल्प के लिए भी काम कर रहे हैं। परन्तु सरकार और अडानी ग्रुप के विरोधियों द्वारा स्थानीय लोगों को जरिया बनाकर अडानी हसदेव मामले के माध्यम से इसका अडानी ग्रुप का विरोध किया जाता रहा हैं और देश के विकास में सहायक इस कोल माइनिंग के काम में बाधा खड़ी की जाती रही है। अडानी ग्रुप स्वयं भी हसदेव वन की जैव विविधता और इसकी महत्वता से भली भांति परिचित है। इसके संरक्षण के लिए बिजली उत्पादन के अन्य विकल्पों पर गंभीरता से काम कर रहा है। हसदेव वन में अनेक लुप्त होते वन्य जीव की कई प्रजाति और सैकड़ों प्रकार की पेड़ पौधे शामिल हैं। हसदेव वन क्षेत्र हाथियों की बड़ी संख्या के लिए भी प्रसिद्ध है। 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैले हसदेव वन में गोंड, लोहार, पहाड़ी कोरवा और ओरांव जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार से ज्यादा लोग रहते है।

पर्यावरण संरक्षण हेतु यहाँ PESA (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरियाज) Act 1996 यानि पंचायत का अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार का अधिनियम पूर्व में लागू किया गया था, जिसके चलते स्थानीय पंचायत की सहमति के बगैर इस वन क्षेत्र में इंडस्ट्रियल एवं माइनिंग एक्टिविटी पर रोक थी। PESA एक्ट के कारण हसदेव वन क्षेत्र को नो गो क्षेत्र माना जाता था और कोयला खनन से जुड़ी किसी भी प्रकार की गतिविधियाँ यहाँ वर्जित थी। अडानी ग्रुप और सरकार ने स्थानीय आदिवासियों की पर्यावरण को लेकर चिंता को संज्ञान में लेते हुए क्षेत्र और आसपास के विकास को देखते हुए नियमों में उचित बदलाव किये और हसदेव वन में खनन की अनुमति प्रदान की गई। इस मामले में सरकार और सम्बन्धित अधिकारीयों ने स्थानीय लोगों को आश्वस्त किया की पर्यावरण को सुरक्षित रखने के सभी इंतजाम किए जा रहे हैं। वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के नए नियमों की जानकारी देते हुए स्थानीय शासन और अधिकारीयों द्वारा हसदेव वन से पंचायत को यह विश्वास दिलाया कि कोयला खनन के दौरान पर्यावरण संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास जाएंगे और नियमों का सख्ती से पालन होगा। हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को बिजली उत्पादन के उद्देश्य से कोयला खदान का आवंटन किया गया था जिसके बाद राजस्थान सरकार ने इसकी जिम्मेदारी अडानी ग्रुप को सौंपी थी जिसके अंतर्गत सरकार के सभी नियमों का पालन करते हुए अडानी ग्रुप द्वारा माइनिंग एक्टिविटी की जा रही है।

अडानी हसदेव वन मामले में अडानी ग्रुप और सरकार पर लगाए गए आरोप एक बार फिर चर्चा में क्यूंकि सरकार द्वारा हसदेव केस में खनन गतिविधि को पुनः तेजी से शुरू किया गया है। अडानी ग्रुप सभी सरकारी नियमों और निर्देशों के अधीन काम करते हुए राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड के लिए यह काम कर रहा है। साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हसदेव वन की सुरक्षा को देखते हुए राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड एवं अडानी ग्रुप बिजली उत्पादन हेतु सौर ऊर्जा के विकल्प के लिए भी काम कर रहे हैं। अडानी ग्रुप ने यह भी स्पष्ट किया कि अडानी हसदेव वन मामले को लेकर जो भी अफवाह फैलाई जा रही है उस पर विश्वास न करें हम सभी कार्य सरकार की निगरानी में कर रहे हैं, हमनें हमेशा देश हित में काम किया है और आगे भी इसी प्रकार करते रहेंगे। अडानी ग्रुप के लेकर अडानी हसदेव वन से जुड़ी सभी खबरें और आरोप बेबुनियाद सिद्ध हुए हैं और किसी भी रूप में अडानी ग्रुप गैरकानूनी गतिविधि में लिप्त नहीं है। अडानी ग्रुप और राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड मिलकर इस कार्य पर निर्भरता काम कर सौर ऊर्जा के उपयोग पर भी काम कर रहे हैं और निश्चित रूप से जल्द ही बिजली निर्माण के लिए हमें एक सार्थक स्त्रोत प्राप्त होगा एवं देश को नवाचार के साथ ऊर्जा उत्पादन के लिए एक नई राह मिलेगी जो पर्यावरण संरक्षण के लिए भी लाभकारी होगी।

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